Sudha Milk price hike: सुधा दूध बिहार और झारखंड के उपभोक्ताओं के लिए महंगा हो गया है। कंपनी ने 22 Octuber 2025 से दूध की नई दरें पहले से ही लागू कर दी हैं। उपभोक्ताओं का कहना है कि यह सीधे घरेलू बजट पर पड़ेगा। सरकार के अधीन कॉम्फेड ने इस बढ़ोतरी को अनिवार्य बताया है।
सुधा दूध की नई कीमतें
सुधा फुल क्रीम ‘गोल्ड’ दूध की कीमत 62 रुपये से बढ़ाकर 65 रुपये प्रति लीटर कर दी गई है। शक्ति दूध अब 55 रुपये की बजाय 57 रुपये प्रति लीटर मिलेगा। गाय का दूध 52 रुपये से बढ़कर 54 रुपये कर दिया गया है। वहीं सुधा हेल्दी दूध 49 रुपये से 52 रुपये प्रति लीटर हो गया है। यह बदलाव पूरे बिहार और झारखंड में लागू होगा।
दाम बढ़ाए गए हैं, लेकिन सुधा घी, दही, लस्सी और पेड़ा जैसे अन्य उत्पादों की कीमत में बदलाव नहीं किया गया है। उपभोक्ताओं के लिए यह बात राहत की है कि फिलहाल अन्य डेयरी उत्पाद पहले की ही कीमत पर मिलेंगे।
बढ़ोतरी की वजहें
कॉम्फेड ने स्पष्ट किया है कि दूध उत्पादन की मात्रा बढ़ने के कारण ही तरीका बढ़ाना पड़ा। पशुचारे की कीमतों में 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई है। पैकेजिंग, बिजली और लॉजिस्टिक्स का खर्च भी बढ़ा गया है। यही हैं मुख्य कारण हैं कि दूध की कीमतें ऊपर ले जानी पड़ीं।
किसानों और उपभोक्ताओं पर असर
कॉम्फेड का हवाला देना है कि इस वृद्धि से दुबारा किसानों को भी अधिक किया जाएगा। लेकिन कुछ किसान प्रतिनिधियों का तर्क है कि सीधा लाभ हर डेयरी किसान तक नहीं पहुंचेगा। उपभोक्ताओं का कहना है कि महंगा होना दूध घरेलू खर्च बढ़ाएगा।
छोटे कारोबारियों की चिंता
चायवालों और मिठाई व्यापारियों पर इस निर्णय का सीधा प्रभाव पड़ेगा। दूध के बढ़ती दर के कारण उन्हें अपने प्रोडक्ट का भी दाम बढ़ाना होगा। छोटे व्यापारी पहले से महंगाई ग्रस्त हैं और अब दूध की कीमत बढ़ने के कारण उनके कारोबार पर भी दबाव बढ़ेगा।
कॉम्फेड का बयान
कॉम्फेड ने अपने बयान में यह कहा कि यह बढ़ोतरी आवश्यक थी। उत्पादन में लागत में जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज कर दी गई है। पिछले एक साल में पशु आहार से लेकर ईंधन और पैकेजिंग तक हर कुछ महंगा हुआ है। इसलिए दूध के दाम बढ़ाना अब मजबूरी बन गया था।
जीएसटी और दूध
सुधा दूध की कीमत बढ़ने की वजह जीएसटी नहीं है। कॉम्फेड ने बताया कि दूध पर फिलहाल कोई नयी जीएसटी टारिफ लागू नहीं की गई है। गाय का दूध और अन्य बेसिक कैटेगरी अभी भी जीएसटी मुक्त हैं। अर्थात दूध की कीमतें बढ़ने की असली वजह है किस्त, न टैक्स।